Religion: शरद पूर्णिमा – भारतीय संस्कृति, धर्म, ज्योतिष शास्त्र एवं योग अध्यात्म आदि में चंद्रमा एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है – योग गुरु महेश अग्रवाल

Sharad Purnima - Moon holds an important place in Indian culture, religion, astrology and yoga spirituality etc. - Yoga Guru Mahesh Aggarwal.

आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि चंद्रमा औषधियों का स्वामी है, चंद्रमा अमृत है वह जीवन के लिए संजीवनी है। चंद्र चराचर जगत और विशेषकर मानवीय संवेदनाओं, जीवनचर्या को मंगलमय बनाए रखने में सर्वाधिक योग कारक है। इसलिए प्रत्येक धर्मावलम्बी, योग साधक , प्रकृति प्रेमी चंद्र को अपने धार्मिक ,आध्यात्मिक व ज्योतिषीय जीवन में विशेष प्रधानता दिया करता है। योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि अश्विन माह में आने वाली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस पूर्णिमा को कौमुदी, कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा धरती के सबसे निकट होता है। ये पर्व रात में चंद्रमा की दूधिया रोशनी के बीच मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि पूरे साल में केवल शरद पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। इस दिन चंद्र देव की पूजा करना शुभ होता हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन चन्द्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है और इस दिन से शरद ऋतु का आगमन होता है। इस दिन चंद्रमा की दूधिया रोशनी में दूध की खीर बनाकर रखी जाती है और बाद में इस खीर को प्रसाद की तरह खाया जाता है। मान्यता है कि इस खीर को खाने से शरीर को रोगों से मुक्ति मिलती है। शरद पूर्णिमा के दिन व्रत करना फलदायी सिद्ध होता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण  चंद्रमा की सभी सोलह कलाओं से युक्त थे। इस पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा से निकलने वाली किरणें चमत्कारिक गुणों से परिपूर्ण होती है। नवविवाहिता महिलाओं द्वारा किये जाने वाले पूर्णिमा व्रत की शुरुआत शरद पूर्णिमा के त्यौहार से होती हैं तो यह शुभ माना जाता है। इस दिन धन की देवी माता लक्ष्मी की पूजा भी की जाती हैं। मान्यताओं अनुसार, शरद पूर्णिमा का व्रत रखने के पूर्व रात्रि देवी लक्ष्मी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन से धन समस्याओं का अंत होता है और धन तथा वैभव की प्राप्ति होती है । कवि, लेखक और प्रेमियों के लिए चांद एक प्रिय रूपक तो है ही। अनेक व्रत शशांक के दर्शन पर पूर्ण होते हैं और यही ताराधिपति करवाचौथ पर स्त्रियों को परम सौभाग्य का वर देते हैं। सूर्य प्रत्यक्ष नारायण हैं तो चंद्रमा राकेश यानी रात के ईश्वर हैं। ‘चंद्रमा का प्रकाश सूर्य के समान तेजस्वी नहीं होता कि तारामंडल ही विलीन हो उठे। चंद्रमा तो एक भिन्न ही सरिता का वाहक है। जिसमें अनेकानेक पौराणिक कथाएं, परम्पराएं, काव्य, व्रत एवं त्योहार प्रवाहित होते हैं। चंद्रमा की पूर्णता होली के त्योहार की सूचक है तो उसकी अनुपस्थिति दिपों के पर्व का निमंत्रण देती है। भाद्रपद का शुक्लपक्षी चांद गणेशजी के जन्मोत्सव के आरम्भ की सूचना देता है तो वहीं शरद पूर्णिमा पर अमृतवर्षा कर जगत जीवों को तृप्त कर देता है। यही चंद्रमा करवाचौथ की निशा को सौभाग्यवती स्त्रियों के कठिन व्रत को पूर्णता प्रदान करता है।
*योग अभ्यास में भी चन्द्रमा का महत्व हैं, चंद्रभेदी प्राणायाम आखों की समस्या से छुटकारा पाने के लिए बेहद कारगर साबित होता है। जो लोग आंखों के धुंधलेपन से परेशान हैं उन्हें इस आसन का नियमित अभ्यास करना चाहिए। इसके नियमित अभ्यास से मन को शांति मिलती है और तनाव दूर होता है। उच्च रक्तचाप के लिए बहुत उपयोगी अभ्यास हैं । सूर्य नमस्कार के अभ्यास के लाभ जैसे ही चंद्र नमस्कार के लाभ प्राप्त होते हैं, जिस प्रकार सूर्य नमस्कार विशेष रूप से प्रातः काल कराया जाता है उसी प्रकार चंद्र नमस्कार संध्या काल में करना चाहिए। शरीर सुंदर, बलिष्ठ, सुडौल होता है। उदर प्रदेश को लाभ मिलता है। क़ब्ज़, अम्लता, अजीर्ण आदि दूर होते हैं। शरीर कातिवान एवं तेजमय बन जाता है। मानसिक शांति एवं शीतलता प्राप्त होती है। आलस्य, प्रमाद आदि नहीं होते। संपूर्ण शरीर को निरोगी बनाता है। दिशा : चूँकि चंद्रमा की ऊर्जा एवं उससे होने वाले लाभ को आत्मसात् करना है। अतः जिस दिशा में चंद्र का उदय हो उसी दिशा का चयन करना चाहिए।
*शशांक आसन – शशांक अर्थात चन्द्रमा भी होता हैं,यह आसन उदर संबंधी रोगों से छुटकारा दिलाता है।* मेरुदण्ड के विकार दूर करता हैं। महिलाओं के वस्ति-प्रदेश को लाभ पहुँचाता है। रक्त संचार प्रणाली को सुचारु करता है। मानसिक विकार दूर होते हैं। वायु विकार का शमन करता है।प्रजनन अंग के विकारों को ठीक करता है। सावधानी : अति उच्च रक्तचाप वाले इस आसन को न करें।
पूर्णिमा की रात्रि का ध्यान काफी प्रचलित है। चन्द्रमा और आध्यात्मिक क्रियाओं के बीच में गहरा संबंध है। पूनम की रात को चन्द्रमा की रोशनी में किया हुआ ध्यान अति मनमोहक और गहरा होता है। चन्द्रमा हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है। चाहे कोई त्यौहार हो अथवा किसी कार्य का शुभारम्भ करना हो, प्राचीन काल में सब कुछ चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार तय होता था। उदाहरण के लिए ईद, गुरु पूर्णिमा और होली इत्यादि त्यौहार की तिथि चन्द्रमा की तिथि पर निर्धारित हैं। पूर्णिमा की रात्रि को धरती से चन्द्रमा सम्पूर्ण चमकता, दमकता दिखाई देता है। इस दिन पृथ्वी सूर्य और चंद्र के बीच में होती है और तीनों एक सीधी रेखा में होते हैं।
विभिन्न संस्कृतियों में पूर्णिमा का महत्व अलग-अलग प्रकार से समझाया गया है। कुछ में इसे धार्मिक व आध्यात्मिक पथ से जोड़ा गया है और कुछ में इसे मात्र समय का सूचक माना गया है। भारत में प्राचीन काल से ऐसी मान्यता है कि पूर्णिमा का मुख्यतः प्रभाव सृष्टि में जल के प्रवाह पर होता है। बौद्धधर्मी इसे आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर होने का सूचक मानते हैं। ऐसी मान्यता है कि पूर्णिमा का चाँद हमारे मन और चित्त पर प्रभाव डालता है, अतः इसे उन्माद का कारण भी समझा जाता है।

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