Editorial: हरीश अरोड़ा की कविताओं में आयरनी है : पवन माथुर

There is irony in Harish Arora's poems: Pawan Mathur

‘समकालीन कविता के दौर में भी हरीश अरोड़ा ने नयी कविता की परंपरा को बरकरार रखा है। उनकी कविताएँ अभिधात्मक शैली मे लिखी कविताएँ हैं लेकिन ये कविताएँ आयरनी में हैं।‘ ये विचार हिन्दी साहित्य के वरिष्ठ आलोचक पवन माथुर ने अद्विक प्रकाशन, किआन फाउंडेशन और अरुंधति भारतीय ज्ञान परंपरा, पी जी डी ए वी कॉलेज (सांध्य) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित वरिष्ठ साहित्य हरीश अरोड़ा के दो कविता संग्रहों ‘कैनवास से बाहर झाँकती लड़की’ और ‘तटस्थ नहीं मैं’ तथा कोयल बिस्वास द्वारा किए गए इनके अंग्रेजी अनुवाद के लोकार्पण के अवसर पर रखे। उन्होंने यह भी कहा कि हरीश बिम्ब के नहीं भाव के कवि हैं। भले ही इनकी कविता में बिम्ब मिलते हैं लेकिन इनके दोनों संग्रहों की रचनाओं में भावुकता अधिक दिखाई देती है।

इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ गीतकार रमाकांत शर्मा उद्भ्रांत ने कहा कि हरीश ने पैंतीस वर्षों में अपनी कविता यात्रा में जो रचा है उसमें तत्कालीन समाज की आवाज मौजूद है। वे समाज को बेहद करीब से देखते हैं और कविता में ढालते हैं। कविता के साथ-साथ आलोचना और अन्य साहित्यिक विधाओं में लेखन इनकी साहित्यिक यात्रा में इनकी बहुमुखी प्रतिभा की पहचान है।

कार्यक्रम के आरंभ में कवि हरीश अरोड़ा ने अपनी कविता यात्रा के संबंध में कहा कि वे केवल समाज को ही नहीं जीते बल्कि शब्द, अर्थ और कविता को भी जीते हैं। उन्होंने कहा कि इन संग्रहों के कोयल बिस्वास द्वारा किए गए अंग्रेजी अनुवाद केवल अनुवाद भर नहीं हैं बल्कि वे उनके भावों के पुनर्सृजन हैं। कोयल बिस्वास ने भी इस संबंध में कहा कि इन संग्रहों का अनुवाद उनके सामने नयी चुनौती की तरह रहा। कविताओं के कई प्रतीकों का अंग्रेजी में अनुवाद करना असंभव सा प्रतीत हुआ लेकिन उन्होंने कवि की भाव-संरचना पर केंद्रित होकर ही अनुवाद किया।

वरिष्ठ आलोचक सुधा उपाध्याय हरीश अरोड़ा को कोरा भावुक कवि नहीं मानती। उनके अनुसार कोरी भावुकता और कोरी बौद्धिकता निकम्मी होती है। उनका मानना है कि हरीश कोरी भावुकता के कवि नहीं हैं। वे समाज को पर्यवेक्षक के रूप में देख रहे हैं और उसे गुन रहे हैं। वैसे तो सभी रचनायें अस्वीकार असंतोष और अतृप्ति से जन्म लेती हैं पर हरीश अरोड़ा केवल अपनी अतृप्तियों और असंतोष दर्ज नहीं कराते समय और समाज को इसकी समकालीनता में चीन्हते हैं चिन्हित करते हैं इसलिए क़द्दावर कवि कहलाते हैं।

इस अवसर पर गगनांचल पत्रिका के संपादक रवि शंकर ने कहा कि यह संसार परमात्मा की कविता है और हरीश उस कविता को अपनी दृष्टि से लिख रहे हैं। वरिष्ठ व्यंग्यकार और आलोचक सुभाष चंदर हरीश अरोड़ा की कवितों को ‘बेचैनी का अनुवाद’ कहकर विश्लेषित करते हैं। उनके अनुसार हरीश अपनी कविता यात्रा में अनेक सवाल पूछते हैं। वे केवल सवाल ही नहीं पूछते बल्कि उन सवालों के उत्तर के तलाश भी करते हैं। उनका मत है कि सवाल पूछना अपने आपको जिन्दा रखने की कोशिश करना है।

कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार और आलोचक रेणु यादव ने किया। उन्होंने बीच-बीच में अपनी आलोचनात्मक टिप्पणियाँ देते हुए हरीश अरोड़ा के संग्रहों की आलोच्य भूमिका भी बनाई। उन्होंने कहा कि ये दोनों ही काव्य-संग्रह दो विपरीत धाराओं पर खड़े हैं लेकिन इन दोनों में एक खास बात है मानवीय संवेदना  ‘कैनवास से बाहर झाँकती लड़की’ की कविताएँ कहीं भावुक हुई हैं तो कहीं स्व में भी रमी हैं, बाहर से भीतर की ओर आने की यात्रा है, लेकिन ‘तटस्थ नहीं मैं’ की कविताएँ वैचारिक हैं.  स्व से पर और पर से समाज और समाज से देश की राजनैतिक गलियारों तक पहुँचने की यात्रा है।

कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापित करते हुए किआन फाउंडेशन की अध्यक्ष शालिनी अगम ने कहा कि हरीश अरोड़ा को प्रकाशित करना हमारे लिए ही महत्त्वपूर्ण नहीं है बल्कि साहित्य जगत के लिए भी आवश्यक है। क्योंकि अच्छा साहित्य किसी भी प्रकाशक के लिए गर्व की बात होती है। इससे प्रकाशन का भी स्तर ऊँचा होता है। इस अवसर पर अद्विक प्रकाशन के प्रकाशक ने समकालीन कविता के कवि हरीश अरोड़ा के इन संग्रहों के अंग्रेजी के साथ पंजाबी, मराठी और राजस्थानी अनुवाद होने से इन भाषाओं के पाठक भी हरीश अरोड़ा की कविताओं के स्वर को जान सकेंगे।

कार्यक्रम का स्वागत वक्तव्य डिम्पल गुप्ता और सरस्वती वंदना आकांक्षा ने प्रस्तुत की। इस अवसर पर देश के विभिन्न स्थानों से सर्वश्री  सरोज, आशा, धनेश द्विवेदी, रूपांशी नारंग, नीलम भट्ट, भूपाल उपाध्याय, सुरजीत पंजाबी, सुदर्शन, अनीता, मंजु, अनमोल, आनंद, नेहा नाहटा, नीरजा, मेघा, उषा, संदीप जिंदल, विकास शर्मा, मनोज कुमार, सुंदरम, पवन, बलवंत सिंह, श्रुति, सीमा, भारत, उमाशंकर, तरुणा पुंडीर, सहदेव, वर्षा, साक्षी, वेद आदि अनेक साहित्यकार, पत्रकार, आलोचक, प्राध्यापक और शोधार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

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