Delhi: दिल्ली विश्वविद्यालय में “सस्टेनेबल डेव्लपमेंट: ए रोड़ टूवर्ड्स लाइफ़लोंग लर्निंग” विषय पर 3 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का हुआ शुभारंभ
A 3-day international conference on “Sustainable Development: A Road Towards Lifelong Learning” began in Delhi University.
दिल्ली विश्वविद्यालय के सतत शिक्षा एवं विस्तार विभाग द्वारा जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज और भारतीय प्रौढ़ शिक्षा संघ के सहयोग से “सस्टेनेबल डेव्लपमेंट: ए रोड़ टूवर्ड्स लाइफलॉन्ग लर्निंग” विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन 18 से 20 जनवरी तक किया जा रहा है। कॉन्फ्रेंस का विधिवत्त उद्घाटन 18 जनवरी को विश्वविद्यालय के कॉन्फ्रेंस हाल में हुआ। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह बतौर मुख्यातिथि उपस्थित रहे। कुलपति ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि लाइफ़लोंग लर्निंग सफलता का एक मंत्र है। यह कोई लक्ष्य नहीं अपितु सुव्यवस्थित यात्रा है।
कुलपति ने अपने उद्घाटन भाषण के दौरान कहा कि केवल वसुधैव कुटुंबकम कहने से काम नहीं चलेगा, इसके लिए हमें उदाहरण स्थापित करने होंगे। हमारे प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत सरकार ने 2047 तक विकसित भारत का संकल्प लिया है। परंतु सतत विकास के लक्ष्यों से समझौता करके इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसीलिए ऐसे कॉन्फ्रेंस आवश्यक हैं। प्रो. योगेश सिंह ने यमुना जैसी कुछ नदियों से 100% पानी नहरों में निकाल लेने को जल प्रदूषण का बड़ा कारण मानते हुए कहा कि “रिवर वाटर से बोटल वाटर” तक की यात्रा बहुत ही दर्दनांक है। उन्होंने कहा कि जितना हम सतत विकास की बात करते हैं कार्यान्वयन में उतना ही उल्टे हैं। जो चीजें प्रकृति ने हमें मुफ्त में दी हैं, हमने उन्हें भी दूषित कर दिया। इसलिए हमें सही शिक्षा की जरूरत है। भारतीय ज्ञान परंपरा इसमें हमें मदद कर सकती है।
कुलपति ने बदलती तकनीक और उसके साथ बदलते आचरण पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि पिछली सदी में उत्पादों के रिपेयर पर काम होता था; फिर उत्पाद की क्वालिटी तो उन्न्त हुई, लेकिन रिपेयर की बजाए रिपलेस पर काम होने लगा। ऐसे थ्युरियाँ कुछ देशों के लिए वहाँ की व्यवस्था के अनुसार ठीक हो सकती हैं, लेकिन भारत जैसे 140 करोड़ की आबादी वाले देश के लिए ठीक नहीं हो सकती। इसके साथ ही कुलपति ने इस कॉन्फ्रेंस के समूहिक आयोजन के लिए तीनों भागीदारों को शुभकामनाएँ भी दी। इस दौरान कुलपति द्वारा कॉन्फ्रेंस की सार पुस्तिका का विमोचन भी किया गया और “विकसित भारत @2047: युवाओं की आवाज” विषय पर आयोजित पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कार भी वितरित किए गए। इस अवसर पर साउथ कैम्पस के निदेशक प्रो. श्री प्रकाश सिंह भी उनके साथ उपस्थित रहे।
उद्घाटन समारोह के आरंभ में डीसीईई के एचओडी प्रो. राजेश कुमार ने अतिथियों और सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया। इस कॉन्फ्रेंस के सहभागी संस्थान, जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज, की प्रिंसिपल प्रो. स्वाति पाल ने अपने संबोधन के दौरान इस अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस की सह-मेजबानी करने पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कॉन्फ्रेंस के आयोजन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, “गरिमापूर्ण जीवन आंतरिक रूप से एक स्थायी भविष्य से जुड़ा हुआ है। लेकिन जिम्मेदारी कहां है? सतत विकास को एक व्यक्तिगत, रोजमर्रा की पसंद बनने की जरूरत है। पृथ्वी और पारिस्थितिकी तंत्र के साथ हमारे संबंधों को फिर से परिभाषित करना महत्वपूर्ण है।” समारोह के अंत में डीसीईई के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कुमार आशुतोष द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया।