Editorial: यमराज की पूजा का पर्व है धनतेरस : रमेश सर्राफ धमोरा

Dhanteras is the festival of worship of Yamraj: Ramesh Saraf Dhamora

धनतेरस का त्योहार दिवाली त्योहार के पहले दिन को दर्शाता करता है। यह त्योहार लोगों के जीवन में समृद्धि और स्वास्थ्य लाने के लिए माना जाता है और इसलिए इसे बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। दीपावली का प्रारम्भ धनतेरस से हो जाता है। धनतेरस पूजा को धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। धनतेरस के दिन नई वस्तुएं खरीदना शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। अगर सम्भव न हो तो कोई बर्तन खरीदे। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में सन्तोष रूपी धन का वास होता है।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि धनतेरस के दौरान अपने घर में 13 दीये जलाना चाहिए और अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। जिसमें से सबसे पहले दक्षिण दिशा में यम देवता के लिए और दूसरा धन की देवी मां लक्ष्मी के लिए जलाना चाहिए। इसी तरह दो दीये अपने घर के मुख्य द्वार पर एक दीया तुलसी महारानी के लिए एक दीया घर की छत पर और बाकी दीये घर के अलग-अलग कोने में रख देने चाहिए। माना जाता है कि यह 13 दीये नकारात्मक ऊर्जा और बुरी आत्माओं से रक्षा करते हैं।

धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस दिन का विशेष महत्व है। शास्त्रों में कहा है कि जिन परिवारों में धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है। वहां अकाल मृत्यु नहीं होती। घरों में दीपावली की सजावट भी इसी दिन से प्रारम्भ होती है। इस दिन घरों को लीप-पोतकर, चैक, रंगोली बना सायंकाल के समय दीपक जलाकर लक्ष्मी जी का आवाहन किया जाता है। इस दिन पुराने बर्तनों को बदलना व नए बर्तन खरीदना शुभ माना गया है। धनतेरस को चांदी के बर्तन खरीदने से तो अत्यधिक पुण्य लाभ होता है। इस दिन कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, कुआं, बावली, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाना चाहिए।

धनतेरस का दिन धन्वन्तरी त्रयोदशी या धन्वन्तरि जयन्ती भी होती है। धनतेरस को आयुर्वेद के देवता का जन्म दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन गणेश लक्ष्मी घर लाएं जाते है। इस दिन लक्ष्मी और कुबेर की पूजा के साथ-साथ यमराज की भी पूजा की जाती है। पूरे वर्ष में एक मात्र यही वह दिन है जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है। यह पूजा दिन में नहीं की जाती अपितु रात्रि होते समय यमराज के निमित्त एक दीपक जलाया जाता है।

धनतेरस के दिन यमराज को प्रसन्न  करने के लिए यमुना स्नान भी किया जाता है अथवा यदि यमुना स्नान सम्भव न हो तो स्नान करते समय यमुना जी का स्मारण मात्र कर लेने से भी यमराज प्रसन्न होते हैं। हिन्दु धर्म की ऐसी मान्यता है कि यमराज और देवी यमुना दोनों ही सूर्य की सन्ताने होने से आपस में भाई-बहिन हैं और दोनों में बड़ा प्रेम है। इसलिए यमराज यमुना का स्नान करके दीपदान करने वालों से बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होते और उन्हें  अकाल मृत्यु के दोष से मुक्त  कर देते है।

धनतेरस के दिन यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता हैं। इस दीप को यमदीवा अर्थात यमराज का दीपक कहा जाता है। रात को घर की स्त्रियां दीपक में तेल डालकर नई रूई की बत्ती बनाकर, चार बत्तियां जलाती हैं। दीपक की बत्ती दक्षिण दिशा की ओर रखनी चाहिए। जल, रोली, फूल, चावल, गुड़, नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर स्त्रियां यम का पूजन करती हैं। चूंकि यह दीपक मृत्यु के नियन्त्रक देव यमराज के निमित्त जलाया जाता है, अतः दीप जलाते समय पूर्ण श्रद्धा से उन्हें नमन तो करें। साथ ही यह भी प्रार्थना करें कि वे आपके परिवार पर दया दृष्टि बनाए रखें और किसी की अकाल मृत्यु न हो। धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है।

धनतेरस को मृत्यु के देवता यमराज जी की पूजा करने के लिए संध्या के समय एक वेदी (पाट्टा) पर रोली से स्वास्तिक बनाइये। उस स्वास्तिक पर एक दीपक रखकर उसे प्रज्वलित करें और उसमें एक छिद्रयुक्त कोड़ी डाल दें। अब इस दीपक के चारों ओर तीन बार गंगा जल छिडकें। दीपक को रोली से तिलक लगाकर अक्षत और मिष्ठान आदि चढाएं। इसके बाद इसमें कुछ दक्षिणा आदि रख दीजिए जिसे बाद में किसी ब्राह्मण को दे देवें। अब दीपक पर कुछ पुष्पादि अर्पण करें। इसके बाद हाथ जोडकर दीपक को प्रणाम करें और परिवार के प्रत्येक सदस्य को तिलक लगाएं। अब इस दीपक को अपने मुख्य द्वार के दाहिनी और रख दीजिए। यम पूजन करने के बाद अन्त में धनवंतरी पूजा करें।

इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है। कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और उन्होने राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।

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