‘धा धिंन्ना’ ही जीवन है: तबला वादक मनमोहन डोगरा की सुरमयी यात्रा

'Dha Dhinna' is life: The melodious journey of tabla maestro Manmohan Dogra

बनारस की मिट्टी से निकला सुरों का जादूगर

युवा तबला वादक मनमोहन डोगरा ने भारतीय शास्त्रीय संगीत में अपनी एक खास पहचान बनाई है। बनारस घराने के गुरु पंडित विजय शंकर मिश्र और अजराड़ा घराने के उस्ताद अकरम खां से संगीत की बारीकियाँ सीखने वाले मनमोहन आज शास्त्रीय संगीत की दुनिया में नई लहर बनकर उभरे हैं।

संगीत की यह साधना मात्र वादन तक सीमित नहीं रही। मनमोहन गायन की शिक्षा भी ले रहे हैं। वह मानते हैं कि संगीत से पहला परिचय उन्हें अपनी मां के भजनों के माध्यम से हुआ। मां की लयबद्ध वाणी ने उनके भीतर सुरों के बीज बो दिए।


🥁 बचपन का तबला और ‘ता-धा-तागे-धा-धिंन’ की समझ

मनमोहन डोगरा बताते हैं कि बचपन में तबले के बोल सिर्फ खेल लगते थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने समझा कि “संगीत के सुरों में ही जीवन का सुर है। और तबले के ‘धा धिंन्ना’ में ही जीवन है।”
उनकी गुरु परंपरा और मां का साथ उन्हें रचनात्मकता की नई ऊंचाइयों तक ले गया।

उनकी तबला यात्रा को दिशा देने में स्कूल की शिक्षिका रेणू मैडम का भी बड़ा योगदान रहा, जिन्होंने उन्हें पहला तबला उपहार में दिया और सीखने के लिए प्रेरित किया।


🎼 तबले की ‘सम’ तक पहुँचने की यात्रा

एक कलाकार के लिए सीखना जीवन भर की प्रक्रिया है – और मनमोहन इसी सिद्धांत पर चलते हैं।
वह कहते हैं –

“हर बार संगत करते हुए या एकल वादन में, तबला वादक अपनी अंगुलियों से एक नए लक्ष्य की खोज करता है। सम तक पहुँच कर फिर नया कायदा या टुकड़ा बजाता है।”

मनमोहन की खास बात यह है कि वह संगत करते हुए मुख्य कलाकार पर हावी नहीं होते, बल्कि अपने तबले से संतुलन और लयबद्धता का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। यही बात उन्हें परिपक्व कलाकार बनाती है।


🌍 अरैबिक संगीत, जैज और कथक की त्रिवेणी

मनमोहन डोगरा इन दिनों एक अनूठे प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं जिसमें अरैबिक संगीत, जैज ड्रमिंग और कथक नृत्य का संगम देखने को मिलता है।
इस प्रस्तुति में कथक नृत्यांगना ऋचा श्रीवास्तव, जैज ड्रमर सियामी और तबला वादक मनमोहन एक साथ मंच पर आते हैं। मनमोहन ताल, वाचन (पढ़ंत) और तबला – तीनों से प्रस्तुति को जीवंत बनाते हैं।

इस प्रयोगात्मक संगीत को कई शहरों में सराहना मिल चुकी है, और अब उनका सपना है कि इसे भारतीय मंचों पर भी प्रस्तुत किया जाए।


🌟 प्रेरणा: उस्ताद जाकिर हुसैन और पंडित संजू सहाय

मनमोहन डोगरा उस्ताद जाकिर हुसैन और पंडित संजू सहाय को अपना आदर्श मानते हैं।

“जाकिर जी हर पल सीखते थे और हर कलाकार से जुड़ते थे। यही सीखने की ललक मुझे प्रेरित करती है,”

वह मानते हैं कि

“सीखने की कोई सीमा नहीं होती, बस हमारे भीतर सीखने की इच्छा होनी चाहिए।”

Related Articles

Back to top button