Health: मां ने बेटे को किडनी डोनेट कर दिया नया जीवन
Mother donated kidney to her son and gave him a new life
नवरात्र के पावन अवसर पर एक मां ने किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे अपने बेटे को अपनी किडनी दान कर उसे नया जीवन दिया। ट्रांसप्लांट के बाद मां और बेटा दोनों स्वस्थ हैं। नेफ्रोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. जितेंद्र कुमार के नेतृत्व में यूरोलॉजिस्ट डॉ. सौरभ जोशी और डॉ. वरुण कटियार की टीम ने यह सफल ट्रांसप्लांट किया। एसजीएम नगर निवासी 26 वर्षीय आशीष एक निजी कंपनी में काम करते हैं। वह पिछले एक साल से किडनी की बीमारी से ग्रसित थे। उन्हें बार-बार डायलिसिस के लिए इधर-उधर भागना पड़ता था। जिससे वह काफी परेशान थे। कम उम्र होने के कारण परिजनों ने उन्हें किडनी ट्रांसप्लांट कराने की सलाह दी। उन्होंने इस पर सहमति जताई। वरिष्ठ किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र कुमार ने बताया कि किडनी फेल होने पर किडनी ट्रांसप्लांट बेहतर विकल्प है। लेकिन इसमें दिक्कत यह है कि डोनर की हमेशा कमी रहती है। इस नवरात्रि में खास बात यह रही कि बेटे का ब्लड ग्रुप मां से मैच नहीं कर रहा था, लेकिन मां की इच्छा अपनी किडनी दान करने की प्रबल थी।
जबकि बेटे के शरीर में मां के ब्लड ग्रुप के प्रति एंटीबॉडी जरूरत से ज्यादा थी। नई तकनीक एडवांस विट्रोसॉर्ब सेकोरिम कोलम से ब्लड ग्रुप बदलकर ट्रांसप्लांट किया गया। नवरात्रि में मां द्वारा दिया गया यह दान विशेष महत्व रखता है, क्योंकि मां को हम दया के साथ-साथ शक्ति और ममता के रूप में भी जानते हैं। इस प्रकार का दान मां का अपने बच्चों के प्रति प्रेम का बेहतरीन उदाहरण है। इस दौरान 51 वर्षीय मां ममता ने अपनी एक किडनी बेटे आशीष को दान की। ट्रांसप्लांट के बाद अब दोनों स्वस्थ हैं। उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। यूरोलॉजिस्ट डॉ. सौरभ जोशी, डॉ. वरुण कटियार ने बताया कि एबीओ असंगत विधि में ए-बी-ओ का मतलब ब्लड ग्रुप होता है। इस तकनीक से मरीज और डोनर का ब्लड ग्रुप अलग-अलग होने पर भी किडनी ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। खास बात यह है कि किडनी ट्रांसप्लांट से पहले मरीज और डोनर की एंटीबॉडी का स्तर मानक के अनुसार होना चाहिए। इसे डोनर के अनुकूल बनाने में दस दिन का समय लगता है। प्लाज्मा एक्सचेंज तकनीक से हर दिन मरीज के शरीर में एंटीबॉडी की मात्रा कम होती जाती है।