Yoga: तट रक्षक दिवस- सैनिकों के लिए जरूरी योग, आती है एकाग्रता – योग गुरु महेश अग्रवाल
Coast Guard Day - Yoga is important for soldiers, it improves concentration - Yoga Guru Mahesh Aggarwal
आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने भारतीय तट रक्षक दिवस के अवसर पर भारत के समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा को सुनश्चित करने के लिए सैनिको के प्रयासों को नमन एवं तट रक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें देते हुए बताया कि तटरक्षक दिवस भारत में 1 फ़रवरी को मनाया जाता है। यह दिन उन वीर जवानों के प्रति समर्पित है जो अपनी जान की परवाह किए बगैर अपना जीवन देश सेवा में लगा देते है । यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा तटरक्षक बल है। एक तट रक्षक जहाज पर जीवन आकर्षक, साहसिक और चुनौतीपूर्ण होता है। समुद्र में मानव जीवन को बचाने और संकट में मछुआरों की सहायता करने से लेकर शिकारियों को पकड़ने और समुद्री जैव विविधता को संरक्षित करने तक, “तट रक्षक” अपनी नौकरी करते हैं। समुद्र में प्रत्येक दिन आशाओं से भरा होता है, और प्रत्येक मिशन अद्वितीय तरीके से भिन्न होता है। भारतीय तट रक्षक भारतीय नौसेना, सीमा शुल्क विभाग, यहां तक कि राज्य और सामान्य पुलिस बलों के साथ भी सहयोग करता है।
भारतीय तट रक्षक का आदर्श वाक्य “वयं रक्षामः – हम रक्षा करते हैं” है। हर दिन वे खुद को कई मिशनों में शामिल कर रहे हैं। हमारे देश और नागरिकों की सुरक्षा के लिए उनके द्वारा किए गए प्रयासों की हमें निश्चित रूप से सराहना करनी चाहिए।
योग गुरु अग्रवाल ने सेना में सैनिको एवं उनके परिवार क़े लिये योग क़े महत्व क़े बारे में बताया कि योग और अध्यात्म हमारा स्वभाव है, रोग हमारा स्वभाव नहीं है। योग के माध्यम से हम पूर्ण स्वास्थ्य, शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य प्राप्त कर सकते हैं। योग जीवन जीने की कला और विज्ञान है, और इसका संबंध मन और शरीर के विकास से है। अतः समन्वित रूप से व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करने के लिए योग क्रमबद्ध अनुशासनों का समावेश करता है। हम योगानुशासनों का आरंभ प्राय: व्यक्तित्व के बाहरी आयाम, भौतिक शरीर से ही करते हैं। आसनों का अभ्यास मेरुदण्ड के अतिरिक्त मांसपेशियों तथा जोड़ों को स्वस्थ और लचीला बनाये रखता है। विभिन्न ग्रंथियों की सूक्ष्म मालिश हो जाती है जिससे अवटु (थाइरॉयड) – अतिक्रियता या अवक्रियता, इंसुलिन का दोषपूर्ण स्राव और अन्य हॉर्मोन असंतुलन जैसी दैहिक असामान्यताएँ संतुलित हो जाती हैं।
प्राणायाम केवल फेफड़ों में शुद्ध वायु पहुँचाने और उन्हें शक्ति प्रदान करने के कारण महत्त्वपूर्ण नहीं, बल्कि ये मस्तिष्क और भावनाओं पर भी सीधा असर डालते हैं। प्राणायाम के द्वारा प्राप्त हुई भावनात्मक स्थिरता मानसिक एवं सृजनात्मक ऊर्जाओं को रचनात्मक ढंग से मुक्त करती है और बच्चा अधिक आत्म-विश्वास, आत्म-सजगता तथा आत्म-नियंत्रण से भर उठता है। प्रत्याहार बाहरी वातावरण से सजगता को अन्दर खींचकर दैनिक जीवन के तनाव को कम करता है। प्रत्याहार की विभिन्न विधियाँ, जैसे योग निद्रा, व्यक्ति के सभी आयामों को प्रभावित करती हैं, क्योंकि सजगता के प्रत्यावर्तन से उत्पन्न शारीरिक एवं मानसिक शिथिलीकरण तथा एकाग्रता इस विधि के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। अविच्छिन्न एकाग्रता या ध्यान मन के उपद्रवों को शांत करने और मानसिक शक्तियों को सृजनात्मक दिशा प्रदान करने में अत्यंत सहायक होता है। योगानुशासनों की नियमित पुनरावृत्ति के द्वारा दैनिक जीवन में समचित्तता की अनुभूति और बाद में सभी यौगिक अभ्यासों के अंतिम लक्ष्य, समाधि को पाया जा सकता है। योग का अभ्यास सम्पूर्ण व्यक्तित्व में एक संतुलन उत्पन्न करता है।