Editorial: धरती के स्वर्ग की व्यवस्थाओं को संवारने निखारने की श्रृंखला मेंदो और अध्याय जुड़े

Two more chapters added to the series of beautifying the heavenly arrangements on earth

वैश्विक स्तरपर सर्वविदित है कि दुनियां की धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले भारत के अभिन्न अंग जम्मू कश्मीर राज्य जहां 1987 के एक विवादित चुनाव के साथ कश्मीर में बड़े पैमाने पर सशस्त्र उग्रवाद की शुरूआत हुई, जिसमें राज्य विधानसभा के कुछ तत्वों ने एक आतंकवादी खेमे का गठन किया, जिसने इस क्षेत्र में सशस्त्र विद्रोह में एक उत्प्रेरक के रूप में भूमिका निभाई। और फिर उसके दशकों बाद जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 और 35ए द्वारा दिए गए विशेष दर्जे को हटाने के लिए संसद ने 5 अगस्त, 2019 को मंजूरी दी। तब केन्द्रीय गृह मंत्री ने इसे ऐतिहासिक भूल को ठीक करने वाला ऐतिहासिक कदम कहा था। चाइल्ड मैरिज एक्ट, शिक्षा का अधिकार और भूमि सुधार जैसे कानून अब यहां भी प्रभावी है।इसी तरह यहां सभी  व्यवस्थाओं को सुद्धारित संशोधन करते हुए विकास व सफलताओं के अनेक अध्याय जुड़ते चले गएऔर आज दिनांक 6 दिसंबर 2023 को संसद के मानसूनसत्र में जम्मू कश्मीर आरक्षण और पुनर्गठन संशोधन संबंधित दोनों विधेयकों के पारित होने से परिवर्तन की कड़ी में एक और मोती जुड़ गया है जो मिल का पत्थर साबित होगा इसलिए आज हमपीआईबी व मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगेलोकसभा में परित जम्मू कश्मीर के दोनों विधेयक मील का पत्थर साबित होंगे।
साथियों बात अगर हम दिनांक 6 दिसंबर 2023 को संसद में पारित जम्मू कश्मीर संबंधी दोनों विधेयकों की करें तो, लोकसभा ने जम्‍मू-कश्‍मीर आरक्षण-संशोधन विधेयक 2023 और जम्‍मू-कश्‍मीर पुनर्गठन-संशोधन विधेयक 2023 पारित कर दिये हैं।जम्‍मू-कश्‍मीरआरक्षण-संशोधन विधेयक-2023, जम्‍मू-कश्‍मीर आरक्षण विधेयक-2004 में संशोधन के बारे में है। इसके अंर्तगत अनुस‍ूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और सामाजिक तथा शैक्षिक रूप से पिछडे लोगों को पेशेवर संस्‍थानों में नौकरियों तथा प्रवेश में आरक्षण का प्रावधान है। उधर जम्‍मू-कश्‍मीर पुनर्गठन संशोधन विधेयक-2023, जम्‍मू-कश्‍मीर पुर्नगठन विधेयक-2019 में संशोधन के बारे में है। इस विधेयक में जम्‍मू-कश्‍मीर विधानसभा में कुल 83 सीटों को निर्दिष्‍ट करने वाले 1950 के अधिनियम की दूसरी अनुसूची में संशोधन किया गया था।प्रस्‍तावित विधेयक में सीटों की कुल संख्‍या बढाकर 90 करने का प्रावधान है। इसमें अनुसूचित जातियों के लिए 7 और अनुसूचित जनजातियों के लिए 9 सीटों का प्रस्‍ताव किया गया है। विधेयक में यह भी कहा गया है कि उपराज्‍यपाल विधानसभा में कश्‍मीरी विस्‍थापितों में से दो सदस्‍यों को नामांकित कर सकते हैं। इनमें एक सदस्‍य महिला होनी चाहिए। विस्‍थापितों को ऐसे व्‍यक्तियों के रूप में परिभाषित किया गया है जो पहली नवम्‍बर 1989 के बाद कश्‍मीर घाटी या जम्‍मू-कश्‍मीर के किसी अन्‍य भाग से विस्‍थापित हुए हों और राहत आयुक्‍त के साथ पंजीकृत हों। इसमें कश्मीरी पंडित समुदाय के दो सदस्यों और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से विस्थापितों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक सदस्य को विधान सभा में नामित करने का प्रावधान है। यह विधेयक नियुक्ति और प्रवेश में आरक्षण के लिए पात्र लोगों के एक वर्ग के नामकरण को बदलने का प्रयास करता है। दो दिनों तक चली छह घंटे से अधिक की बहस और केंद्रीय गृह मंत्री के जोशीले जवाब के बाद विधेयक पारित कर दिए गए।गृहमंत्री ने कहा कि सरकार द्वारा लाए गए जम्मू कश्मीर से संबंधित दो विधेयक पिछले 70 वर्षों से अपने अधिकारों से वंचित लोगों को न्याय देंगे। कहा कि विस्थापित लोगों को आरक्षण देने से उन्हें विधायिका में आवाज मिलेगी।गृह मंत्री के मुताबिक, विधानसभा में नौ सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित की गई हैं। पीओके लिए 24 सीटें आरक्षित की गई हैं, क्योंकि पीओके हमारा है। उन्होंने कहा कि इन दोनों संशोधन को हर वो कश्मीरी याद रखेगा जो पीड़ित और पिछड़ा है। विस्थापितों को आरक्षण देने से उनकी आवाज जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में गूंजेगी। शाह ने कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी के सवालों पर कहा कि कश्मीरी विस्थापितों के लिए 880 फ्लैट बन गए हैं और उनको सौंपने की प्रक्रिया जारी है।
साथियों बात अगर हम इन विधेयकों की अन्य विशेषताओं की करें तो, उसमें कश्मीरी प्रवासी समुदाय से विधानसभा में अधिकतम दो सदस्यों को नामित करने की उपराज्यपाल की शक्ति शामिल है, जिसमें एक नामांकित महिला होगी। इसके अतिरिक्त, पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के विस्थापितों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक सदस्य को नामांकित किया जा सकता है। कश्मीरी प्रवासियों को उन व्यक्तियों के रूप में परिभाषित किया गया है, जो 1 नवंबर, 1989 के बाद कश्मीर घाटी या जम्मू-कश्मीर राज्य के किसी अन्य हिस्से से चले गए और राहत आयुक्त के साथ पंजीकृत हैं। संसद के निचले सदन में बहस के दूसरे दिन के दौरान, केंद्रीय गृह मंत्री ने कथित तौर पर कहा कि नया कश्मीर- जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2023 के माध्यम से शुरू हुआ। पिछले 70 वर्षों से अपने अधिकारों से वंचित लोगों को न्याय सुनिश्चित करेगा। चर्चा के दौरान  विपक्ष के कई सदस्यों ने विधेयक पारित करने का विरोध किया, जब जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की वैधता और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है। विपक्ष ने यह भी सवाल किया कि क्षेत्र की विशेष स्थिति रद्द करने के बाद चार साल तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव क्यों नहीं हुए।
साथियों बात अगर हम माननीय केंद्रीय गृहमंत्री के सदन में जवाब की करें तो, लोक सभा में उन्होंने कहा कि कुल 29 वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए लेकिन बिल के उद्देश्यों के साथ सभी ने सहमति जताई। उन्होंने कहा कि पीएम के नेतृत्व में लाए गए सैकड़ों प्रगतिशील परिवर्तनों की कड़ी में ये विधेयक एक और मोती जोड़ने का काम करेंगे। आगे कहा कि 70 सालों से जिन लोगों के साथ अन्याय हुआ, जो अपमानित हुए और जिनकी अनदेखी हुई, ये विधेयक उन्हें अधिकार और न्याय दिलाने वाले हैं। जो लोग इन्हें वोट बैंक के रूप में उपयोग कर, अच्छे भाषण देकर राजनीति में वोट हासिल करने का ज़रिया समझते हैं वे इसके नाम के बारे में नहीं समझ सकते। पिछड़ों औऱ गरीबों का दर्द जानते हैं। जब ऐसे लोगों को आगे बढ़ाने की बात होती है, तब मदद से ज़्यादा सम्मान के मायने होते हैं।कश्मीरी विस्थापितों को आरक्षण देने से कश्मीर की विधानसभा में उनकी आवाज गूंजेगी और अगर फिर विस्थापन की स्थिति आएगी तो वो उसे रोकेंगे।पूर्व पीएम जवाहरलाल नेहरू जी की गलती का खामियाजा वर्षों तक कश्मीर और देश को उठाना पड़ा।पहली गलती थी, जब हमारी सेना जीत रही थी, तब पंजाब तक आते ही सीज़फायर कर दिया गया और पाक-अधिकृत कश्मीर का जन्म हुआ, अगर सीज़फायर 3 दिन देर से होता तो पाक-अधिकृत कश्मीर आज भारत का हिस्सा होता।नेहरु जी की दूसरी बड़ी गलती थी जब वे कश्मीर मसले को संयुक्त राष्ट्र में ले गए।जम्मू और कश्मीर में 45 हज़ार लोगों की मृत्यु की ज़िम्मेदार धारा 370 थी, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने उखाड़ कर फेंक दिया।धारा 370 के हटने सेअलगाववाद समाप्त हुआ है और आतंकवाद में बहुत कमी आई है।कश्मीर के विस्थापितों को अपने ही देश के अन्य हिस्सों में शरणार्थी बनकर रहना पड़ा, लगभग 46,631 परिवारों के 1,57,967 लोग विस्थापित हुए1947 में 31,779 परिवार पाक-अधिकृत कश्मीर से जम्मू और कश्मीर में विस्थापित हुए, 1965 और 1971 में हुए युद्धों के बाद 10,065 परिवार विस्थापित हुए।अगर किसी व्यक्ति ने कश्मीर से पलायन करने वाले लोगों के आंसू पोंछे तो वह प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी हैं।जम्मू कश्मीर के इतिहास में पहली बार 9 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित की गई हैं और अनुसूचित जाति के लिए भी सीटों का आरक्षण किया गया है।पहले जम्मू में 37 सीटें थीं जो अब 43 हो गई हैं, कश्मीर में पहले 46 सीटें थीं वो अब 47 हो गई हैं और पाक-अधिकृत कश्मीर की 24 सीटें रिज़र्व रखी गई हैं, क्यूंकि हम मानते हैं कि पीओके हमारा है।पहले जम्मू और कश्मीर विधानसभा में 107 सीटें थीं, अब 114 सीटें हो गई हैं, पहले 2 नामित सदस्य होते थे, अब 5 होंगे।इन विधेयकों के ज़रिए इतिहास में लोक सभा के इस प्रयास को हर प्रताड़ित, पिछड़ा और विस्थापित कश्मीरी याद रखेगा कि पीएम सरकार ने 70 सालों से भटकने वाले अपने ही देश के भाई-बहनों को न्याय दिलाने के लिए 2 सीटों का आरक्षण दिया।यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि विपक्षी पार्टी ने पिछड़ा वर्ग का सबसे बड़ा विरोध किया, मोदी जी ने उन्हें सम्मान और अधिकार दिया।गृह मंत्रालय ने एक ज़ीरो टेरर प्लान और कम्प्लीट एरिया डॉमिनेशन प्लान बनाया है, पहले सिर्फ आतंकवादियों को मारा जाता था, लेकिन अब हमने इसके पूरे इकोसिस्टम को खत्म कर दिया है

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