Health: आईआईएसईआर भोपाल के शोधकर्ताओं ने जामुन की जीनोम-सीक्वेंसिंग करके पहली बार जामुन के औषधीय गुणों को समझने का किया प्रयास

Researchers at IISER Bhopal attempted to understand the medicinal properties of blackberries for the first time by doing genome-sequencing of blackberries.

भोपाल, 5 th दिसंबर 2023: भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान भोपाल (आईआईएसईआर भोपाल) के शोधकर्ताओं ने जामुन के पेड़ (Syzygium cumini) का पहला जीनोम सीक्वेंसिंग पूरा किया है, जो भारत में अपने औषधीय गुणों, और फलों के लिए लोकप्रिय है। पेड़ के औषधीय मूल्यों के जीनोमिक और विकासवादी आधार को समझने के लिए शोध टीम ने ऑक्सफोर्ड नैनोपोर और 10x जीनोमिक्स सीक्वेंसिंग प्रौद्योगिकी का उपयोग करके एस.क्यूमिनी जीनोम को सीक्वेंस किया है। जामुन दुनिया के सबसे बड़े पेड़ जीनस, सिज़िजियम से अनुक्रमित होने वाला सबसे बड़ा जीनोम है। जैविक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. विनीत के. शर्मा के नेतृत्व में गठित टीम में आईआईएसईआर भोपाल से अभिषेक चक्रवर्ती, श्रुति महाजन और मनोहर सिंह बिष्ट भी शामिल रहे हैं। इस शोध के निष्कर्ष को सहकर्मी-समीक्षित जर्नल फ्रंटियर्स इन प्लांट साइंस में प्रकाशित किया गया है।इस शोध के उद्देश्य के बारे में बात करते हुए आईआईएसईआर भोपाल के जीव विज्ञान विभाग के डॉ. विनीत के शर्मा ने कहा, “इस शोध का उद्देश्य जामुन जीनोम सीक्वेंसिंग से नई कार्यात्मक और विकासवादी र्दृष्टिकोण प्राप्त करना था जो इस प्रजाति के औषधीय गुणों के व्यापक उपयोग के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं, यह आधुनिक चिकित्सा में न्यूट्रास्यूटिकल एजेंट्स के रूप में कार्य करते हैं।“

इस अनुसंधान से प्राप्त दृष्टिकोणों को उजागर करते हुए डॉ. विनीत के. शर्मा ने कहा, " कुल मिलाकर यह स्पष्ट है कि एस क्यूमिनी प्रजाति में पौधों के मुख्य सेकेंडरी मेटाबोलिज्म का आदर्श संवेग असाधारण रूप से इस पेड़ के एंटीडायबेटिक, एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इन्फ्लेमेटरी, और अन्य औषधीय गुणों को प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त एस क्यूमिनी का संपूर्ण  जीनोम सीक्वेंस दुनिया के सबसे बड़े वृक्ष जीनस पर भविष्य के जीनोमिक, विकासवादी और पारिस्थितिक अध्ययन की सुविधा प्रदान करेगा।“ साइज़ियम क्यूमिनी, जिसे अक्सर जामुन, जाम्बोलन, या ब्लैक प्लम के नाम से जाना जाता है, एक मायर्टेसी पौधा कुल का उष्णकटिबंधीय पेड़ है। प्राकृतिक रूप से इसका विस्तार भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण-पूर्व एशिया में होता है। लौंग का वंश सिज़ीगियम दुनिया का सबसे बड़ा वृक्ष वंश है जिसकी 1,193 मान्यता प्राप्त प्रजातियाँ हैं, जिनमें से जामुन भी एक है। जामुन की औषधीय गुणों की भारत में व्यापक रूप से प्रशंसा की जाती हैं। विशेष रूप से जामुन के फल के बीजों के अर्क में विख्यात एंटी-डायबिटिक गुणधर्म होते हैं। इसकी आयुर्वेद में भी सिफारिश की जाती है जिससे पेट में दर्द, गठिया, हृदय समस्याएं, उदर सम्बन्धी, अस्थमा, डायरिया, और पेट के उत्तेजन की विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज किया जा सकता है। काले जामुन को ताजे रूप में खाया जा सकता है या इसका रस बनाकर भी पिया जा सकता है। न केवल आयुर्वेद में बल्कि अतीत में भी कई नैदानिक अध्ययनों में जामुन के स्वास्थ्य लाभों को दर्शाया गया है क्योंकि यह फ्लेवोनोइड्स, पॉलीफेनोल्स, एंटीऑक्सीडेंट, लौह और विटामिन सी जैसे बायोएक्टिव गुणों का एक उत्कृष्ट स्रोत है। आईआईएसईआर भोपाल का यह पहला ऐसा प्रयास है जिसमें पौधे की इतनी बारीकी से जांच और डिकोड किया गया है। जामुन जीनोम में इस जीन की अन्य दो सीक्वेंस प्रजातियों की तुलना में जीन दोहराव की घटनाओं के परिणामस्वरूप कोडिंग जीन की संख्या अधिक है, जो जामुन प्रजाति में एक नियोपोलिप्लोइडी घटना की ओर इशारा करती है। जीन का यह दोहराव जामुन को नवीन कार्य प्राप्त करने की अनुमति दे सकता है। इस विश्लेषण में जामुन के अनुकूली विकास को सुविधाजनक बनाने में शामिल प्रमुख जीनों का पता चला है। इनमें से 14
जीन टेरपेनोइड्स के जैवसंश्लेषण में शामिल हैं, जो मेटाबोलाइट्स का एक विविध वर्ग है जो पौधों की रक्षा प्रतिक्रियाओं के लिए जिम्मेदार होता है। यह पेड़ की पत्तियों और बीजों द्वारा प्रदान किए जाने वाले एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी- इंफ्लेमेटरी गुणों में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। इसके अलावा जामुन में एक अन्य प्रकार का मेटाबोलाइट, एल्कलॉइड भी पौधों के विभिन्न भागों में प्रचुर मात्रा में पाया
जाता है और कई बीमारियों के खिलाफ उपचारात्मक गुण प्रदान करता है। शोधकर्ताओं का सुझाव है कि फ्लेवोनोइड्स के साथ एल्कलॉइड्स का यह संयोजन ही पौधे को गठिया-रोधी गुण प्रदान करता है। प्राचीन काल से ही जामुन को गठिया के इलाज के लिए सबसे अच्छे घरेलू उपचारों में से एक माना जाता रहा है। इस पौधे के मधुमेह प्रतिरोधी गुणों को पूरी तरह से समझने के लिए शोधकर्ताओं ने ग्लूकोसाइड्स की उपस्थिति की खोज की है जोकि मेटाबोलाइट्स का ही एक और वर्ग है जो स्टार्च को चीनी में बदलने से रोकता है और बताता है कि पौधे में मधुमेह विरोधी मूल्य कैसे है। पिछले नैदानिक मूल्यांकनों से पता चला है कि जामुन में ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है और यह मधुमेह के लक्षणों जैसे अत्यधिक पेशाबको कम करता है। जामुन में विभिन्न ऐसे जीन भी होते हैं जो पौधे को कठोर बनाते हैं और खरपतवार और कीड़ों जैसे कारकों के प्रति इसके तनाव और सहनशीलता में सुधार करते हैं जो नुकसान, गर्मी का तनाव, लवणता और सूखे का कारण बनते हैं। शोध टीम ने पाया कि यह जामुन में उल्लेखनीय अनुकूली विकास की ओर इशारा करता है।

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