Yoga: योगशक्ति के द्वारा निकलने वाली तरंगें विद्युत तरंगों की तरह है – योग गुरु महेश अग्रवाल

The waves emanating from Yogashakti are like electrical waves - Yoga Guru Mahesh Aggarwal

आदर्श योग आध्यात्मिक केन्द्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के योग गुरु महेश अग्रवाल ने गुरु चरणामृत के महत्व के बारे में बताया कि गुरु का चरण धोने का रहस्य समझ कर यह काम करना चाहिये। गुरु की हथेली धोने भी वही बात होती है। यद्यपि हथेली का महत्त्व योग-दृष्टि से और भी श्रेष्ठ है। तथापि दस भाव की साधना के अनुसार चरण धोना ही स्वीकार किया गया है। यद्यपि आज हम इसके महत्त्व को नहीं समझ रहे हैं, मात्र परम्परानुसार पैर-धुलाई हो रही है, तथापि योगशक्ति से अभिमन्त्रित जल को प्राप्त करने का यही सर्वश्रेष्ठ साधन है। योगशक्ति से उत्पन्न होने वाली सक्रिय आध्यात्मिक तरंगों से जल को यौगिक बनाया जा सकता है। मैस्मैरिज्म के विज्ञान भी यही कहता है।
यह योगशक्ति चरण, हथेली, नेत्र और ललाट से निःसृत होती है। ललाट को देखने से इसका प्रभाव ग्रहण किया जाता है। नेत्रों द्वारा यह शक्ति उपासक के पास पहुँचती है। हथेली द्वारा स्पर्श प्राप्त करके भी वह शक्ति उपासक के पास जाती है। चरणों का स्पर्श करने पर भी यह शक्ति प्राप्त होती है।
योगशक्ति को ग्रहण करने के माध्यम जल, प्रसाद, पुष्प, टीका, सिर पीठ, दीक्षा, उपदेश, दृष्टि और श्रद्धा हैं। अर्थात् इन माध्यमों से गुरु की योगशक्ति को लेकर ग्रहण किया जाता है। वैदिक तन्त्रानुसार यही योगशक्ति के माध्यम माने गये हैं। वाम-तन्त्र में और माध्यम भी स्वीकार किए गये हैं।
योगी के शरीर से अध्यात्म तरंगें निकलती है, जिनसे बड़े भारी काम होते हैं। ये तरंगें शरीर में प्रविष्ट होकर रचनात्मक और सुधारात्मक कार्य किया करती है। इन तरंगों की गति सूक्ष्म शरीर में ही नहीं, कारण शरीर में भी होती है। योगशक्ति के द्वारा निकलने वाली तरंगें विद्युत तरंगों की तरह जल, प्रसाद, पुष्प आदि माध्यमों को चार्ज या प्रभावित करती हैं, जिनका इस्तेमाल रोग-शोक और साधना के उत्थान में किया जाता है। इन तरंगों का प्रभाव साधक के योग के अनुरूप होता है; अर्थात् प्रेम, दया, आशीर्वाद, शान्ति, समाधान, , शक्ति आदि गुण-धर्मों वाली तरंगें निकलती हैं। यद्यपि ये तरंगें योगी की कुटिया, वस्त्र तथा निजी इस्तेमाल की चीजों में अधिक सक्रिय रहती हैं; किन्तु सहज प्राप्य और सर्वसुलभ न होने से जल, प्रसाद, पुष्प आदि के माध्यम से इन्हें प्राप्त किया जा सकता है।
इसीलिये सभी धर्मों में किसी-न-किसी रूप में योगशक्ति के प्रभावों को प्राप्त करने की विधियाँ प्रचलित हैं। हमारे यहाँ चरणामृत लेना, फूल पाना, भोग का प्रसाद पाना, टीका लगवाना, सिर छुआना, पीठ थपथपाना, दीक्षा लेना, उपदेश सुनना, दृष्टि मिलवाना, गुरु द्वारा प्रयुक्त वस्त्रादि का ध्यान में इस्तेमाल करना, इत्यादि योग के प्रभावों को प्राप्त करने के मार्ग सर्वत्र प्रचलित हैं। गुरुजन भी अपने प्रभावों को अनेक मार्गों से देकर साधकों का कल्याण करते हैं।
परन्तु गुरु के चरण धोना सहज नहीं है। इसका भी विशिष्ट तरीका है। कौन-सा जल प्रयोग में लाया जाता है? कौन-सा समय है चरण धोने का? कौन-सा चरण धोया जाता है? कैसे यह जल प्रयोग में लाया जाता है? कैसे यह जल रखा। जाता है? क्या योगी गुरु को चमड़े के जूते पहनने चाहिये? क्या गुरु इस विज्ञान को अपनी आँखों से देखता है?
योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि गुरु के चरणों की पहली धोवन फेंक दी जाती है, परन्तु यह गलत तरीका है; क्योंकि पहली धोवन ही सक्रिय बनती है और प्रभावों को ग्रहण करती है; परन्तु पहली धोवन में पैरों की गन्दगी भी तो रहती है। अतः चरण धोने का समय वह है, जब गुरु स्नानादि होकर कुछ देर तक साधना में बैठ चुके हों। तब गन्दगी भी नहीं रहती; पहली धोवन भी मिलती है। प्रातः सूर्योदय का समय सर्वश्रेष्ठ है।
यदि अन्य समय हो, तो चरण न धोकर अन्य माध्यमों से प्रभावों को प्राप्त करना चाहिए यानि चरण-स्पर्श किया जा सकता है , परन्तु वह कुछ देर तक किया जाय। मस्तक और हथेलियों के माध्यम से किया जाय। और समय और माध्यमों का सुविधानुसार प्रयोग करो। मन्त्र-दीक्षा चैत्र, ज्येष्ठ, आषाढ़ और पौष के महीने में नहीं लेनी चाहिये।
नदी के जल से काम चल जायेगा। यदि सुरक्षित रखने का विचार हो, तो गंगाजल यदि चरण की धोवन तुरन्त लेने का विचार हो तो गुलाब-जल का या शुद्ध विधान है अंगुलियों को धोने का, वह भी अँगूठे को । परन्तु पूरे चरण को धोने में ही उपयुक्त है। योगशक्ति की तरंगें अंगुलियों से तीव्रता के साथ निकलती है; अतः  कोई हर्ज नहीं। इतना ध्यान रहे कि चरण धोने के लिए छोटी आचमनी का उपयोग ही किया जाय। चरण धोने में कम-से-कम 108 मन्त्र का समय लगना चाहिये। यह जल शुद्ध ताम्र पत्र में रखा जाय; अथवा स्क्रू ढक्कन वाली बोतल में। अतः गुरु लोग चमड़े के जूते का इस्तेमाल न करें, क्योंकि इससे चरण की धोवन अस्वस्थ हो जायेगी। यदि करते हैं तो चरण की धोवन न दें। जिसने इन योग-तरंगों को अपनी आँखों से देखा है, वह गुरु उन नियमों को भी जानता है, जो यहाँ पर ‘बन्द’ हैं। अन्य धर्मावलम्बी चुम्बन द्वारा शक्ति संचार प्राप्त करते हैं। चुम्बन अँगूठे या हथेली की पीठ पर किया जाय।
गुरु चरणामृत का प्रयोग विशेष पूजा-पर्व पर किया जाय। विशेष संकट उपस्थित होने पर, दीर्घ जीवित रोग या शोक में अथवा अदृश्य पीड़कों की बाधा में कुल परम्परानुसार देवोपासना करने के बाद श्रद्धापूर्वक चरणामृत का पान किया जाय। तदुपरान्त गुरु-पूजा का कुंकुम लगाया जाय। यदि गुरु ने कुछ ‘बन्द’ उपाय बताया हो तो उसका प्रयोग सबसे अन्त में किया जाय।
गुरु में योगशक्ति हो, और चेले में श्रद्धा तो असम्भव की चुनौती स्वीकारी जा सकती है।

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