Editorial: देश के लिए रामलला की प्राण प्रतिष्ठा एक गौरवशाली क्षण

Ramlala's martyrdom is a glorious moment for the country.

RK Sinha, Founder SIS, Former member of Rajya Sabha, at his residence, for IT Hindi Shoot. Phorograph By – Hardik Chhabra.

आर.के. सिन्हा

अयोध्या या भारत ही नहीं, सारे संसार में राम की चर्चा है। भारत तो राममय हो ही चुका है। अयोध्या में आगामी 22 जनवरी को होने वाले राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के लिए जोर-शोर से तैयारियां चल रही हैं। लगभग 500 वर्ष के दीर्घकालीन वनवास के पश्चात प्रभु श्री राम पुनः पूरे विधि विधान के साथ अपने जन्म स्थान में पुन: विराजमान होने वाले हैं।  भगवान राम फिर अयोध्या लौटे हैंI लेकिन, उनके उस जन्मस्थान पर आखिर सभी पंथ, सभी संप्रदाय के लोग समय-समय पर क्यों आते जाते रहें है? क्योंकि, राम किसी संकीर्ण विचारधारा से नहीं बंधे हैं। राम ही भारत की प्राणशक्ति हैं। राम ही धर्म हैं। मानव शरीर की श्रेष्ठता और उदात्तता का सीमांत राम से ही बनता है। हर व्यक्ति के जीवन में हर कदम पर जो भी अनुकरणीय हैं, वह राम ही हैं। इसीलिए तो यहां सिख गुरु नानकदेव भी आए और अयोध्या में जन्में पांच जैन तीर्थंकरों ने भी अपने को राम की वंश-परंपरा से ही जोड़ा। बनारस से दलित संत रविदास अयोध्या भी राम दर्शन के लिए आए तो दक्षिण के आलावर संत भी। द्वैत सिद्धांत मानने वाले आचार्य भी। अद्वैत के प्रवर्तक शंकराचार्य और विशिष्टाद्वैत के बल्लभाचार्य भी अयोध्या आकर जन्मस्थान पर अपनी साधना में लीन रहे। निर्गुण कबीर भी राम को भजते हैं और सगुण तुलसी भी। भवभूति भी राम को जपते हैं। तुकाराम से तिरुवल्लुवर तक के लिए राम पीड़ित, शोषित और वंचित की अभिव्यक्ति हैं। श्रीराम की अयोध्या कैसी है? अयोध्या लोकतंत्र की जननी है। आराधिका है। संरक्षिका है। अयोध्या का लोकतंत्र संविधान या परंपरा से नहीं आचरण की श्रेष्ठता से चलता है। अयोध्या का लोकतंत्र लोकमंगल से चलता है। और वहां बना राम मंदिर ? क्या जन्मस्थान पर बनी यह नई इमारत राजस्थान के बंसी पहाड़पुर के पत्थरों और कंक्रीट का महज एक मंदिर है? नहीं। ये बदलते भारत का प्रतीक है, जिसमें किसी अन्याय के प्रतिकार की ताकत है। इस मंदिर से हमारी परंपरा, संस्कृति, धर्म, सभ्यता, मान -सम्मान का गर्भनाल का रिश्ता है। अयोध्या का मंदिर श्रीराम का है। इस बीच, एक बात कहनी होगी कि  अयोध्या में रामलला के मंदिर और प्राण प्रतिष्ठा की जिस तरह से तैयारियां उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की निगरानी में हुईं उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है। योगी आदित्यनाथ ने राज्य सरकार के कामकाज  के साथ –साथ मंदिर निर्माण के काम को भी देखा। वे रोज काम की प्रगति की जानकारी लेते रहे और जरूरी निर्देश अपने मंत्रिमंडल के साथियों और अफसरों को देते रहे। उनकी पैनी नजर के चलते ही राम मंदिर में चल रहा निर्माण कार्य वक्त रहते पूर्ण हुआ।बहरहाल, अयोध्या श्रीराम की थी,श्रीराम की है और श्रीराम की ही रहेगी। श्री राम भारत के कण-कण में हैं। हमारे भाव की हर हिलोर में श्री राम हैं। राम यत्र-तत्र, सर्वत्र हैं। जिसमें रम गए, वहीं राम हैं। यहां सबके अपने – अपने राम हैं। गांधी के राम अलग हैं, लोहिया के राम अलग। बाल्मीकि और तुलसी के राम में भी फर्क है। भवभूति के राम दोनों से अलग हैं। कबीर ने राम को जाना, तुलसी ने माना, निराला ने बखाना। राम एक हैं, पर राम के बारे में दृष्टि सबकी भिन्न है।त्रेता युग के श्री राम त्याग, शुचिता,  मर्यादा, संबंधो और इन संबंधों से ऊपर मानवीय आदर्शों की वे प्रति मूर्ति है, जिनका दृष्टांत आधुनिक युग में भी अनुसरण करने के लिए दिया जाता है।मर्यादा पुरुषोत्तम राम आदर्श पुत्र,  आदर्श राजा, आदर्श भ्राता ही नहीं वरन आदर्श पति भी हैं, जो आजीवन एकपत्नी व्रती रहे। भगवान श्री राम ने राजा होते हुए त्याग, संयम, धैर्य, सहयोग और प्रजा के प्रति सेवा भाव का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हुए पत्नी वियोग के साथ नाना प्रकार के कष्ट सहे। ईश्वरीय अवतार होने के बावजूद मनुष्य रूप में अनेक कष्ट सहने के बावजूद इतिहास ने भी उनके साथ कम अन्याय नहीं किया। माता सीता पर मिथ्या दोषरोपण के कारण राम द्वारा सीता का परित्याग एक मात्र ऐसा प्रसंग रहा, जिसके कारण आज भी प्रभु श्रीराम नारीवादियों के कटघरे में खड़े दिखाई देते हैं। हालाँकि, मूल वाल्मीकि रामायण में सीता जी के त्याग का ऐसा कोई प्रसंग नहीं मिलता। ऐसा माना जाता है यह प्रसंग बाद में तत्कालीन लेखकों तथा कवियों ने राम कथा की दिशा को मोड़ने या यूं कहे राम की छवि को धूमिल करने और सनातन संस्कृति को नष्ट भष्ट करने के लिए जोड़ा । ऐसा भी कह सकते हैं कि भविष्य में नारी के लिए मर्यादा और शुचिता के कड़े मानदंड स्थापित करने के लिए बाद में यह प्रसंग जोड़ा गया हो। लंका विजय के पश्चात अग्नि को साक्षी मानकर सीता माता को पूरे मन से अपनाने वाले प्रभु श्री राम माता सीता का परित्याग करने के बजाय उनके साथ पुनः वनवास लेना अधिक श्रेयस्कर समझते।लेकिन, इस अनर्गल प्रसंग ने प्रभु श्री राम को निरपराध कटघरे में खड़ा कर दिया। वाकई सीता माता के साथ अन्याय हुआ या नहीं यह तो अतीत के गर्भ में है परंतु यदि श्रीराम पर मिथ्या दोष लगाया गया है, तो वाकई इस सूर्यवंशी महान प्रतापी और मर्यादित राजा के साथ हर युग में अन्याय हुआ है। इस बीच, कुछ ऐसे कथित ज्ञानी भी हैं जो श्रीराम को काल्पनिक मानते हैं। वैसे उनके कहने से क्या फर्क पड़ता है। फर्क तब पड़ता, अगर वे हजारों वर्ष से जिस प्रकार जीवित है, हयात है, साक्षात है, वह न होते। वे केवल जीवित ही नही है, उनके नाम मात्र ने मुर्दा बना दिए गए राष्ट्र को ऐसा संजीवन कर दिया उसने विश्व सत्ता को अपने स्थान वापस कर दिया, जैसे वामन अवतार ने राजा बलि को। उनका नाम मात्र धर्म का पर्याय बन गया। दशरथ पुत्र श्रीराम से अधिक, कहीं गुना अधिक काम तो राम नाम मात्र से हुए है। गांधी जी ने साफ कहा कि वे इस बात में पड़ना ही नही चाहते कि राम ऐतिहासिक हैं या नहीं। उनके लिए राम नाम ही उनकी शक्ति और उनकी प्रेरणा थी। खैर, हिंदुत्व और सनातन धर्मावलंबियों के लिए अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण तथा भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा एक गौरवशाली क्षण है और वर्तमान पीढ़ी बेहद भाग्यशाली है जो, इन ऐतिहासिक क्षणों की साक्षी बनने जा रही है । वर्षों से प्रभु श्री राम जन्मभूमि का विवाद न्यायालय के समक्ष लंबित था जिसमें प्रभु श्री राम एक वादी के रूप में थे। दीर्घकाल के वनवास के पश्चात प्रभु श्री राम को अयोध्या में उनका अपना स्थान प्राप्त हुआ है।

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