Editorial: पूरे विश्व में बाबा गुरु नानक देव के अवतरण दिवस 27 नवंबर 2023 के इंतजार में श्रद्धा भाव से आंखें बिछाए भक्तगण
Devotees all over the world keep their eyes closed with devotion waiting for the incarnation day of Baba Guru Nanak Dev on 27th November 2023.

साथियों बात अगर हम गुरु नानक देव जयंती के उपलक्ष में कार्तिक माह से लेकर प्रभात फेरी पर्व मनाने की करें तो, इस दिन प्रात: काल स्नान करके प्रभात फेरी की शुरुआत की जाती है। इसके साथ ही सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारे में भजन और कीर्तन करते हैं। इसके साथ ही गुरु नानक जी को विशेष रूप से रुमाल भी सजाया जाता है। पूरे गुरुद्वारों को दीपों से सजाया जाता है। प्रार्थना सभा के बाद लंगर का आयोजन करने के साथ सेवा दान किया जाता है। इसके साथ ही गुरबाणी का पाठ किया जाता है।गुरु नानक देव के पावन प्रकाशोत्सव पर सिख समाज के लोगों ने दिवाली के चंद्र से लेकर प्रभात फेरी निकाली जाती है। प्रभातफेरी में सिख समुदाय सिन्धी समुदाय के महिला पुरुष एवं बच्चों ने बढ़चढ़ कर हिस्साले रहें है। प्रभातफेरी गुरुद्वारों से निकलकर नगर में भ्रमण करते हुए वापस गुरुद्वारा पहुंचरही है। प्रभात फेरी में शामिल महिलाएं, बच्चे व बुजुर्ग ढोलक बजाते धन गुरु नानक, धन गुरु नानक की गूंज से माहौल भक्तिमय हो गया। संगत ने दुख भंजन तेरा नाम जी ठाकुर गाइए आतम रंग, मारेया सिक्का जगत विच नानक निर्मल पंथ चलाया, सब ते वड्डा सतगुर नानक जिन कल राखी मेरी आदि शबदों का गायन किया। इधर प्रकाश उत्सव के उपलक्ष्य में हर गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से हर कस्बे में प्रभातफेरी निकालजा रही है। रोजाना सुबह 5 बजे पूरे कस्बे में प्रभात फेरी 27 नवंबर तक निकाली जाएगी। प्रभातफेरी में गुरु नानक देवजी की महिमा का गुणगान किया जाता है। प्रभातफेरी गुरुद्वारा परिसर से शुरू होकर कस्बे के गली-मोहल्ले से होते हुए वापस गुरुद्वारा पहुंचकर समाप्त होती है। सिख समुदाय के लोगों का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस के अवसर पर मनाया जाता है। कहा जाता है कि कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष कि पूर्णिमा तिथि पर गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। इस साल कार्तिक पूर्णिमा 27 नवंबर को है, इसलिए 27 नवंबर को ही सिख धर्म के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी जयंती मनाई जाएगी। गुरु नानक देव की जयंती को गुरु पर्व और प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सिख लोग गुरुद्वारे जाकर गुरुग्रंथ साहिब का पाठ करते हैं। गुरु पर्व पर सभी गुरुद्वारों में भजन, कीर्तन होता है और प्रभात फेरियां भी निकाली जाती हैं।
साथियों बात अगर हम प्रभात फेरी केइतिहास और महत्व की करें तो प्रभात फेरी का इतिहास काफी पुराना है। लेकिन खासतौर से सिख धर्म में प्रभात फेरी को अधिक अहमियत मिली है। आज भी न सिर्फ सिख बल्कि दूसरे समुदायों के लोग भी गुरुपूरब से पहले ही प्रभात फेरियां शुरू करते हैं, ताकि गली-गली घूमकर सिख गुरुओं की सीख को लोगों तक पहुंचाया जाए। तड़के-तड़के गुरुद्वारों से निशान साहिब लेकर जत्थे गलियों में निकलते हैं। जहां-जहां से प्रभात फेरी निकलती है वहां-वहां अब लोग चाय के साथ-साथ खाने-पीने के स्टॉल भी लगाते हैं। स्पेशल बैंड परफॉर्मेंस होती है। गतका अखाड़े परफॉर्म करते हैं। अब इन प्रभात फेरियों में हजारों लोग जुड़ने लगे कुछ लोगों का मानना है कि प्रभात फेरी का मकसद उन आलसी लोगों को सुबह समय से जगाना भी है जो अपने स्वार्थ के लिए भगवान को भूल चुके हैं। सुबह का समय भगवान को याद करने का होता है, ताकि आने वाला जीवन अच्छा बीते लेकिन कुछ लोग अपने आलस्य के चक्कर में आराधना से दूर होते जा रहे हैं।
साथियों बात अगर हम बाबा गुरुनानक देव की जीवनी की करें तो, गुरुनानक देव जी सिखों के प्रथम गुरु थें। इनके जन्म दिवस को गुरुनानक जयंती के रूप में मनाया जाता है। नानक जी का जन्म 1469 में कार्तिक पूर्णिमा को पंजाब (पाकिस्तान) क्षेत्र में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नाम गांव में हुआ। नानक जी का जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम कल्याण या मेहता कालू जी था और माता का नाम तृप्ती देवी था। 16 वर्ष की उम्र में इनका विवाह गुरदासपुर जिले के लाखौकी नाम स्थान की रहने वाली कन्या सुलक्खनी से हुआ। इनके दो पुत्र श्रीचंद और लख्मी चंद थें।दोनों पुत्रों के जन्म के बाद गुरुनानक देवी जी अपने चार साथी मरदाना, लहना, बाला और रामदास के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। ये चारों ओर घूमकर उपदेश देने लगे। 1521 तक इन्होंने तीन यात्राचक्र पूरे किए, जिनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य मुख्य स्थानों का भ्रमण किया। इन यात्राओं को पंजाबी में उदासियाँ कहा जाता है। गुरुनानक देव जी मूर्तिपूजा को निरर्थक माना और हमेशा ही रूढ़ियों और कुसंस्कारों के विरोध में रहें। नानक जी के अनुसार ईश्वर कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे अंदर ही है। तत्कालीन इब्राहीम लोदी ने इनको कैद तक कर लिया था। आखिर में पानीपत की लड़ाई हुआ, जिसमें इब्राहीम हार गया और राज्य बाबर के हाथों में आ गया। तब इनको कैद से मुक्ति मिली।गुरुनानक जी के विचारों से समाज में परिवर्तन हुआ। नानक जी ने करतारपुर (पाकिस्तान) नामक स्थान पर एक नगर को बसाया और एक धर्मशाला भी बनवाई। नानक जी की देह त्याग 22 सितंबर 1539 ईस्वी को हुआ। इन्होंने अपनी मृत्यु से पहले अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जो बाद में गुरु अंगद देव नाम से जाने गए।
साथियों बात अगर हम बाबा गुरु नानक देव के उपदेशों की करें तो, किरत करो नाम जपो और बांट कर खाओ, अर्थात अपना जीवनयापन करने के लिए हमें कार्य करना चाहिए, उस परमात्मा की बंदगी भजन और कीर्तन करना चाहिए और हमेशा खाना बांट कर खाना चाहिए।सो क्यों मंदा आखिए जित जमी राजन,अर्थात यह शब्द गुरु जी ने समाज में महिलाओं की स्तर को ऊंचा उठाने के लिए कहे थे कि उस औरत को हम बुरा कैसे कह सकते हैं जो एक राजा को भी जन्म देती है।गुरु जी ने और उपदेश दिया था कि इस संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह उस परमात्मा के हुक्म के अनुसार हो रहा है। सब कुछ उस परमात्मा के हुक्म के अधीन ही है उस हुक्म के बाहर कुछ भी नहीं हो रहा और इंसान के जीवन में सुख और दुख जो कुछ भी घटता है वह उसके द्वारा किए गए कर्मों के अनुसार ही होती हैं।