
आदर्श योग आध्यात्मिक केन्द्र के योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया की हमारे सभी त्यौहार योग एवं आयुर्वेद की शिक्षा देते हैं। यदि हम ध्यान पूर्वक अध्ययन करें तो वैज्ञानिक तथ्य भी होते है, राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस हर साल धन्वंतरी जयंती या धनतेरस के दिन मनाया जाता है। राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस की शुरुआत साल 2016 में हुई थी । इसका उद्देश्य आयुर्वेद क्षेत्र से जुड़े हितधारकों और उद्यमियों को कारोबार के नए अवसरों के प्रति जागरूक करना है। आयुर्वेद सालों से हमारे अच्छे स्वास्थ्य में अपनी भूमिका निभाता आ रहा है। ऐसे में आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाया जाता है । योग गुरु अग्रवाल ने बताया आयुर्वेद (आयुः + वेद = आयुर्वेद ) विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है, यह विज्ञान, कला और दर्शन का मिश्रण है । ‘आयुर्वेद’ नाम का अर्थ है, ‘जीवन से सम्बन्धित ज्ञान’। आयुर्वेद, भारतीय आयुर्विज्ञान है। आयुर्विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध मानव शरीर को निरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने अथवा उसका शमन करने तथा आयु बढ़ाने से है।भगवान धन्वंतरी आयुर्वेद के देवता हैं वे विष्णु के अवतार माने जाते हैं। भगवान धन्वंतरी को भगवान विष्णु का रूप कहते हैं जिनकी चार भुजायें हैं, उपर की दोंनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किये हुये हैं,जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत कलश लिये हुये हैं। इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है। इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है। इन्हे आयुर्वेद की चिकित्सा करनें वाले वैद्य आरोग्य का देवता कहते हैं। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी।
आयुर्वेद के ग्रन्थ तीन दोषों (त्रिदोष – वात, पित्त, कफ ) के असंतुलन को रोग का कारण मानते हैं और समदोष की स्थिति को आरोग्य। इसी प्रकार सम्पूर्ण आयुर्वैदिक चिकित्सा के आठ अंग माने गए हैं (अष्टांग वैद्यक), ये आठ अंग ये हैं- कायचिकित्सा, शल्यतन्त्र, शालक्यतन्त्र, कौमारभृत्य, अगदतन्त्र, भूतविद्या, रसायनतन्त्र और वाजीकरण ।
आयुर्वेद एक जीवन विज्ञान है, जो समुचित आहार एवं जीवनशैली के माध्यम से स्वास्थ्य के संरक्षण एवं रोगों की रोकथाम तथा विभिन्न चिकित्सकीय उपायों के माध्यम से रोगों के उपचार को महत्व देता है। इस प्रकार आयुर्वेद के दो मूलभूत सिद्धांत है। “स्वस्थ्यस्य स्वास्थ्य रक्षणम्” अर्थात् स्वस्थ व्यक्तियों के स्वास्थ्य की रक्षा करना और “आतुरस्य विकार प्रशमनम्” अर्थात् रोगी के रोग का उपचार करना ।