Education: हिन्दी ने कभी देश को तोड़ने का काम नहीं किया: प्रो. योगेश सिंह
Hindi never worked to break the country: Prof. Yogesh Singh
दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि हिन्दी ने कभी देश को तोड़ने का काम नहीं किया, इसने तो हमेशा जोड़ने का काम किया है। प्रो. योगेश सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय के काउंसिल हाल में “विद्रोह के कवि: निराला” पुस्तक के लोकार्पण अवसर पर बतौर मुख्यातिथि संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के बेबाक लहजे और निडरता का स्मरण करते हुए कहा कि 21वीं सदी में भी ऐसे ही सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की जरूरत है। इस अवसर पर उनके साथ दक्षिणी परिसर के निदेशक प्रो. श्री प्रकाश सिंह, रजिस्ट्रार डॉ. विकास गुप्ता, कल्चर काउंसिल के चेयर पर्सन अनूप लाठर, एसओएल की निदेशक प्रो. पायल मागो और प्रॉक्टर प्रो. रजनी अब्बी सहित अनेकों गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने निराला के हिन्दी प्रेम को लेकर पंडित जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी से टकराव को लेकर कहा कि हिन्दी भारत की भाषा है और यह जन-जन की भाषा है। जो लोगों की भाषा होती है उसे किसी की कृपा की जरूरत नहीं होती। उन्होंने सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वह एक दृष्टि से विद्रोह के कवि हो सकते हैं, लेकिन मेरी नज़र में निराला कर्म के कवि हैं, अनुशासन के कवि हैं, सहनशीलता और न्याय के कवि हैं।
कुलपति ने निराला की “भिक्षुक” कविता की पंक्तियों का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि मुझे तो उनमें सबसे ज्यादा करुणा नज़र आती है। उन्होंने निराला की “भिक्षुक” कविता के माध्यम से “चाट रहे झूठी पत्तल….” वाली पंक्तियाँ प्रस्तुत करते हुए कहा कि गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 80 करोड़ लोगों को मुफ्त खाना देकर ऐसा काम किया है कि देश में कोई भूखा न सोए। उन्होने कहा कि भारत सरकार अपना अगला काम भारत से गरीबी को दूर करने का करेगी ताकि 21वीं सदी में कोई निराला भूख पर ऐसी कविता लिखने को मजबूर न हो। कार्यक्रम के आरंभ में प्रो. अनिल राय द्वारा पुस्तक “विद्रोह के कवि: निराला” पर अपनी टिप्पणी प्रस्तुत की। उसके पश्चात और पुस्तक के लेखक डॉ. अंजन कुमार ने अतिथियों का आभार प्रकट किया और कार्यक्रम के अंत में डीन कल्चर प्रो. रवींद्र कुमार ने धन्यवाद ज्ञापित किया।