Health: शासकीय महाविद्यालय में जिला स्तरीय योग प्रतियोगिता का आयोजन विद्यार्थियो ने विभिन्न योगासन, मुद्रा का किया प्रदर्शन

District level yoga competition organized in government college.. Students demonstrated various yoga asanas and postures.

रेहटी जिला सीहोर – नगर के शासकीय महाविद्यालय में उच्च शिक्षा विभाग के निर्देशानुसार जिला स्तरीय योग प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिता के मुख्य अतिथि एवं निर्णायक योगाचार्य महेश अग्रवाल ,  क्रीड़ा अधिकारी डॉ. भंवरसिंह के साथ विशेष रुप से प्रभारी प्राचार्य मनोज राठौर,  स्पोर्ट्स ऑफिसर मनोज वर्मा, दीक्षा सिंह, आकांक्षा उज्जैनिया , मनमोहन द्विवेदी, महेन्द्र मिश्रा, राजाराम रावते, प्रभा रघुवंशी, प्रतिमा त्रिपाठी, एकता यादव आदि उपस्थित रहे। श्री मनोज वर्मा ने बताया कि शासकीय महाविद्यालय बकतरा, शासकीय स्वामी विवेकानंद नसरुल्लागंज और शासकीय महाविद्यालय रेहटी के प्रतिभागियों ने भाग लेकर विभिन्न योगासन, मुद्राएं और सूर्य नमस्कार का प्रदर्शन किया। इसमे   शासकीय महाविद्यालय बकतरा विजेता और शासकीय महाविद्यालय रेहटी उपविजेता रहा।
इस अवसर पर योग गुरू महेश अग्रवाल ने बताया कि योग  से  बच्चों में एकाग्रता और सजगता के गुण विकसित होते है। बच्चों को योग की शिक्षा देने का हमारा सर्वप्रमुख उद्देश्य सीखने की क्षमता को बढ़ाना होना चाहिए।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि योग केंद्र पर बच्चों को योग का विशेष प्रशिक्षण इस उद्देश्य से दिया जाता है कि बच्चों की सीखने की क्षमता बढ़े। जब आप बच्चों को योग की शिक्षा देने की बात सोचते हैं तो कम-से-कम शारीरिक संरचना एवं शरीर विज्ञान का मौलिक ज्ञान होना आवश्यक है। शिक्षक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसके और छात्रों के शरीर दो अलग-अलग अवस्थाओं में हैं, इसलिए उसके लिए यह समझना आवश्यक है कि बच्चे में शारीरिक एवं ज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है। बच्चों में शारीरिक विकास की प्रक्रिया बचपन से किशोरावस्था तक निरंतर चलती रहती है। जीवन के पहले दो वर्षों में यह प्रक्रिया अत्यधिक तीव्रता से होती है और बचपन के मध्य भाग में इसकी गति धीमी हो जाती है। बाद में यौवनारंभ के साथ शरीर का अचानक विकास होने लगता है और वयस्क लंबाई प्राप्त हो जाने पर यह बंद हो जाता है।
योगासनों का वर्गीकरण उनको करने की कठिनाई या अभ्यासों की गत्यात्मकता / स्थिरता के आधार पर किया जाता है। बच्चों को सिखाते समय सबसे पहले सरल, फिर मध्यम प्रकार के और क्रमश: कठिन से कठिनतर आसन बताये जाने चाहिए। बच्चों की कक्षाओं में सिखाये जाने वाले आसनों में मुख्यतया गत्यात्मक अभ्यास होते हैं लेकिन कुछ स्थिर रहने वाले आसन भी सिखाये जाने चाहिए ताकि बच्चे कुछ देर के लिए शांत होकर बैठना भी सीख लें। बच्चा ज्यों-ज्यों बड़ा और परिपक्व होता जायेगा, वह स्वयं स्थिरता वाले आसनों को पसंद करने लगेगा और उनकी माँग करने लगेगा।
योग इतिहास या गणित के समान नहीं है जिसे केवल बुद्धि एवं स्मृति के द्वारा सीखा जा सकता हो। इसे समग्र व्यक्तित्व के माध्यम से समझना और इसका अभ्यास करना है। इसके लिए कम-से-कम एक अभ्यास प्रतिदिन किया जाना चाहिए।
प्रतिदिन सुबह में सूर्य नमस्कार का अभ्यास करना चाहिए। पहले दो दिन आसनों को सिखाया जाना चाहिए, उसके बाद जब शिक्षक आसनों की संख्या बोलें तो बच्चों को उनके अनुसार आसन करने चाहिए। कम-से-कम दो हफ्तों तक, जब तक बच्चे आसनों को स्वयं नहीं करने लगते हैं, तब तक एक प्रदर्शक द्वारा बच्चों के सामने आसनों का प्रदर्शन किया जाना चाहिए। सूर्य नमस्कार के तीन चक्रों का अभ्यास किया जाना चाहिए। एक चक्र में बारह आसनों को दो बार किया जाता है, इस प्रकार कुल मिला कर प्रत्येक स्थिति का अभ्यास छः बार किया जाता है। अभ्यास के पूरा हो जाने पर प्रत्येक बच्चे को किसी आरामदायक आसन में बैठ जाना चाहिए, मेरुदंड और सिर सीधे रहें, हाथों को घुटनों पर या गोद में रखें।
एक सप्ताह तक बच्चे अपने श्वास के प्रति सजग होने अभ्यास कर सकते हैं। आँखों को बंद करके उन्हें अपने श्वास के प्रवाह को देखना है, उसके आने-जाने का अनुभव करना है। एक सप्ताह के बाद वे नाड़ी शोधन प्राणायाम की प्रारंभिक अवस्था का अभ्यास आरंभ कर सकते हैं जिसे उन्हें पूरे साल हर सुबह करना होगा। पाँच बार बायीं नासिका से और पाँच बार दायीं नासिका से धीमे श्वसन का अभ्यास दो बार करना होगा। प्राणायाम करते समय बच्चों को अपनी आँखें बंद रखनी हैं और उन्हें केवल अपने श्वास के प्रति सजग रहना है।

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